कमसे कम देख के दूसरे देशों की प्रगति
उन्होने विज्ञान को उन्नतिका साधन बनाकर
बिखरायी जो विद्वत्ता की रोशनी
ऐ खुदा के नेक बंदो
क्यों झगडते हो मंदिर–मस्जिद के लिए
क्यों खून बहाते हो आरक्षण के लिए
अब तो दूर रखो ये बाते
बरसो से हम लड़ रहे–झगड़ रहे है इसके लिए
पर आया ना कुछ हात सिवा जिल्लत के
हमारे ही झगडे ने मचाया हाहाःकार,
गरीबी, बेरोजगारी और लाचारी
अरे कब समझोगे ये बाते
देख के प्रगत मुल्को की प्रगति को
छोड़ के भाईबंदकी, विज्ञानपर रखो अपनी आँखे
बजाय किसी मंदिर–मस्जिद को
दिए बगैर दान
या कर के उसकी कारसेवा
या देके किसी पत्थर या ईट का दान
जमाकर जुलूस आरक्षण के लिए
या पिछडे प्रवर्ग मे सम्मिलित होने के लिए
मेरे दोस्तो
दोनो हात उठाकर दान दो
किसी ईट, पत्थर का या कारसेवा करो
किसी गरीब का घर बसाने के लिए
उसको दो वक़्त की रोटी खिलाने के लिए
या ईलाज हो मुफ्त मे सब लोगों का
ऐसा दवाखाना तैय्यार करने के लिए
मेरे दोस्तो इतने बरस हो गए हमे आजादी मिल के
फिर भी गरीबी, बेकारी, पिछडापन, अनपढ़पन
पनप रहे है मिलजुल के
हम ने तरक्की की राह छोड़
विज्ञान को लिया है हलके
वो ही मंदिर–मस्जिद की बाते,
वो ही आरक्षणपर चर्चाओं की राते
हर रोज नया कोई आता है
इनपर हमे बहला–फुसलाकर
कस के जूता मार जाता है
हम झुंड बनाकर जानवर बन जाते है
बिना सोचे समझेही
इनकी बातो में आकर तितर–बितर हो जाते है
हम तो डिग्रिया लेकर सुशिक्षित हुए है कागजोंपर
दिलो दिमाग से तो अनपढ़ है असलियतपर
हमे केवल भाँति है दूसरे देशों की सम्पन्नता,
उनकी आण्विक शक्ति, उनकी वैज्ञानिक प्रगति,
जी ललचाता है उन देशों में जाने के लिए, वहा रहने के लिए
पर करनी पडती है मेहनत उसको पाने के लिए
ये हमे नही ज्ञात
हमे तो सब आयता चाहिए
बिना मेहनत किये
क्यों न चाहे छिनना पडे
किसी हुनरमंद का अधिकार उसके लिए
हमे तो यह मालूम ही नही
करना हो देश का विकास
चलना पड़ता है सबको लिए साथ
भूलकर मंदिर–मस्जिद, आरक्षण की बात,
ऊंच–नीच और जात
मेरे दोस्तो, अभी भी संभलो
न आओ किसी की बातो में
छोडो बाते मंदिर–मस्जिद की,
आरक्षण और जात–पात की
ये बाते तो सब ढखोसला है
होंगे चाँद–सितारे पैरों में
अगर मन मे हौसला है