अतिक्रमण भगवान का

 

अरे शोर मत कर, जरा धीरे से यहाँ से गुजर

वहा उस पेड के पीछे, भगवान सो रहे है

रास्ते किनारे, घने छाव के निचे,

कबर मे खुदा आराम फरमा रहे है

 

पंचामृत से नहाकर, नए वस्त्र पहनकर

पंडितो से लोरी सुन रहे है

मखमल की चादर ओढकर, इत्र की खुशबु मे

खादिमो के हातो पंखो से ठंडी हवा का लुफ्त ले रहे है

 

अरे भई जरा धीरे बोल, वो भगवान है, खुदा है

उनका औदा इंसानो से कई गुना बडा है

भले ही वो लोगो के भिक पे

या उनके फेके हुए पैसो से ऐश करते हो

है दुनिया उनके रहमोकरमो पे “, वो समझते है

 

अरे भई सून, बावला बन और निकल यहाँ से

मत नजर मिला इन शहंशाहो से

वरना तुझे ये धरममजहब से जोडकर

रसूलराम के गुस्ताकी की सजा देंगे

तेरा सर तन से जुदा करकर