अब मंदिरो मे वो सुकून नही रहा

 

अब मंदिरो मे वो सुकून नही रहा,

वो अमन, चैन नही रहा

उस जगह भी अजीबोगरीब मायूसी फैली हुई है

लोगो की चिंताये, गम और दर्द की चिल्लाने की आवाजो की वजह से

वहा का भी माहौल गमगीन और खून के आसुओ से सना है

 

वहा भी उस मूरत की कहा इज्जत है

उसके सामने झुंड के झुंड जमा हो के

हो के बेकरार, करने उसको सजदा

कोई उसे दूर से फूल, हार, प्रसाद

पत्थर जैसे फेंक मारता है,

कोई उसके हात, पैर दबादबा के तोड मरोडता है

कोई उसके सर पर तेल, दूध की बारिश कर

उसको अंधा कर देता है

 

अब वो जगह भी कहा जन्नत सी रही

वहा भी दलालो की भीड जुटी है

भिकारी और मुफतखोरो की महफिल सजी है

उसी के सामने पंडित को पैसे देकर

कभी न फलनेवाला दर्शन लेने की होड मची है

वहा के दानपेटियों पे तो नाम है भगवान का

पर ताला खुदगर्जों का लगा हुआ है

 

वहा की दौलत पाने के लिए झगडे, गालीगलौच तो छोडो

किसी का खून बहाना आम बात हो गयी है

 

अब वहा भी अपने विचारो की आजादी नही रही

वहा भी दुवाओ मे, अजानो मे नफरत है फैलायी हुई

हर जगह बोर्ड टंगे हुए है आदेशों के

साथ मे पेहरे भी लगे है पुलिसो के

अब वहा भगवान बसता ही कहा है

वो तो कब का निकल चूका है दिलो से, दुनिया से

उसका पुतला आलीशान महलो मे बिठा के

उसके नाम पे कुछ लोग बैठे है पैसे कमाने

 

देख दुनियावालो की ये करतूदे

वो भी जा पडा है दुनिया के किसी अंधेरे कोने मे

शरमा के अपना मुँह छिपाये

 

अब मंदिरो मे वो सुकून कहा रहा

नफरत, हवस, दुःख, दर्द इन बादलो के

इर्दगिर्द वो भी है घिरा