उपरवाले का अलग ही पैमाना है
इंसान को नापने का, परखने का, जाँचने का
जात, मजहब, पैसा इसका वजन तो उसके पालडे मे है ही नही
मक्कार और इंसानियत के कातिलों के लिए उसके दिल मे जगा भी नही
वो नही आता किसी के बहकावे मे
ना जाता मीठे बोल बोलनेवालो के बाहो मे
वो टटोलते रहता है इंसान के मन को
जो डालते रहते है रोडे किसी के राह मे
अरे जिस से बरकत की भिक मांगता है उसको बेवकूफ मत समझ
जिस के भरोसे लाखो कमाता है,
देकर उसके नाम दो रूपये का चंदा
उसको कम आककर, मत कर उसकी कम कीमत
भले ही आज तेरे लिए चार दीवारो और किताबो मे होगा वो,
लेकिन सुपुर्द–ए–खाक होने के बाद
तेरे करम का पाढा पढता, देने तुझे सजा
तेरे सामने खडा हकीकत मे दिखाई देगा वो