छोडो जात-पात


जातधरम ने हमे क्या दिया, बस रुसवाई और तबहा किया

मालिक ने जैसा बोला वैसा गुलाम बन के उसके दो शब्द सुना

और जानवर जैसा जीना जिया

हमेशा खुद को दुःख के अंधेरे मे ही पाया

लेकिन साथ देने ना दोस्त आया ना भगवान आया


किसी धर्मगुरु को खुदा समझ के उसके पीछे गया

लेकिन खुदको ही वहा खोया

एक दूसरे के मजहब को गालिया देकर

अपने ही समाज के लोगों को जातियों मे बाट दिया


मै भी उससे अछूता कैसे रहता

नीच जाती का हूँकह के, मुझे भी किसी ने डाट दिया


काहे का धरम और काहे की जात

ये तो केवल कहने की है बात

सभी इंसान है एक जैसे, कोई ऊंच नीच नही

मरने के बाद जनाजे को कंधा देने हर धरम के लोग आते है साथ

अरे तब नही होता इंसान को इंसान का बाट

तो जिंदा रहते वक्त क्यो ये कडवाहट


छोडो जातपात

सबको अपना समझकर, अछूत की बीमारी से पाओ निजाद