बडी विटंबना है हमारे देश मे
हम लक्ष्मी, सरस्वती को तो पूजते है
मगर उसी औरत को जनम होते ही
कब्र की पालने मे सुला देते है,
दहेज की आग मे जला देते है
मिलो पैदल चल, माँ के जयकारे गाते है
” रजस्वला हुई माँ ” कहकर, झुककर योनि के आगे
बडे गर्व से नदी का लाल पानी पीते है
नवकन्याओं को भोजन खिलाकर
भावभक्ती से उनके पाव छूते है
हम हमारे बेटी को ही बेटी समझते है
दुसरो की बहुबेटियों को गंदी नजर से देखते है
” संस्कार नही सिखाये ” कहकर ताने कसते है
” यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताः ” सब किताबी बाते है
उसे पैरो तले रौंद, सब दोहरी जिंदगी जीते है