क्या हुआ बंद था खुदा का दर
सबाब के लिए
था यकीन होगी मेरी फ़रियाद मंजूर
उसके चौखट पे ही रख आया सर
उसे नही चाहिए फूलों की माला
या दूध, दही का प्रशाद
दूर से ही क्यों न हात जोड ले हम
रखता है वो हर किसी पे पाक नजर
समाज, मजहब नही देखता वो
हर एक के आंसू पोछता वो
वो लालची नही तुम्हारे दो पैसों का
सबकी दुवाएं कुबूल करता वो
बिना कोई आरजू किये बगैर
वो तो है कोहिनूर
हारे हुए दिल मे आरजू जगानेवाला
उसे जरुरत नही बनावट के उजाले की
सिर्फ दिल से पुकारो
हर एक के लिए जागता है उसका जमीर
बन के चष्मा–ए–नूर