लुभावने नारे

 

लुभावने नारो के शोर मे

आम आदमी की तकलीफे

कहा गुम हो गयी पता ही न चला

politician नो और actor रो की

खूबसूरती निहारती रही जनता की आँखे

जुमलो पे जयकारे कर चिल्लाता रहा आम आदमी का गला

चुनाव हो गए, सरकार बन गयी

खैरात बाँटनेवाले नेता मंत्री बन गये

जब समझ मे आया

गेहू तो छोडो, घुन का दानान मिला

दिल खून के आँसू जला

 

पछताने से क्या फायदा

चिडिया तो हाथ से निकल चुकी थी

लुभावने चेहरे और नारो के पोस्टर पे

धूल जमी हुयी थी

गुस्से से पत्थर मारनाऔर पैरो तले रोंदना

उन जादूगरों के तिलिस्म छबी को

अब इतना ही बाकी था

आने वाले पांच सालो का

दुःख अपना ही साथी था