स्वर्ग, नरक, जन्नत, जहन्नुम
ये तो सारी बाते है
दिल बहलाने के लिए सब गाते है
कैसे रखना किसी को पाव के निचे
कायम करना अपना रुतबा आँखमिचे
ना जी सके कोई सर उठा के कयामत तक
अपने से निचा दिखाकर
सोने की प्याली मे खून पीते है
भगवान, खुदा का डर दिखा के जीते है
मंत्रो, आयतो को गाली बनाते है
पैरोतले कुचलकर किसी को दलित बनाते है
फिर हैवानो से भी बदत्तर बनकर
खुद को ऊँचा समझकर
डाल के किसी माँ–बहनोपर गंदी नजर
ढाके मजलूमो पे जुल्मोसितम
अपने हवस का शिकार बनाने के लिए मनाते है
सिर्फ मुँह मे ही भगवान, खुदा का नाम
हातो से पाप की माला जपते है
मंदिर–मस्जिदो के अंदर
उसी उपरवाले की कब्र खोदते है
स्वर्ग, नरक, जन्नत, जहन्नुम ये सब ढखोसला है
किसी के लिए ये बता के खुदा का कहर
अपना रुतबा कायम करने का हौसला है
तो किसी के लिए ये
ना कोई अपने से ऊँचा उठ सके,
सदा रहे वो पैरो के निचे
ऐसा समझकर लिखा हुआ फैसला है
किसी को निचा दिखाकर अत्याचार करना क्या ये पाप नही
ये जो कर रहे है क्या है ये सही
अगर हकीकत मे नर्क, जहन्नुम है तो याद रखना
सबसे पहले यही कायर जायेंगे वही