हम तो फकीर है, हमारे निराले ही है थाट
और जात–पात का हमे नही बाट
सोते है मंदिर–मस्जिद, चर्च की चौखट पे
जीते है वहा मिलनेवाली दावत पे
पहनते है कपडे हिन्दू–मुस्लिम भाईयों ने दिए खैरात के
सब की दुआए कुबूल करते है
हो कोई कौन से भी जात से
हम तो खुदा के बाशिंदे है
भगवान के पोशिंदे है
कौन हमारा जन्मदाता पता नही
होश आया हिन्दू, मुस्लिम, ख्रिश्चन भाईयों के साथ पाया
भजन, कव्वाली, येशु के गीत गाया
अरे झूट बोलते है लोग
की इंसान मजहबी होता है
मेरे प्यारो इस अनाथ को इन्होने ही तो पाला,
दो वक्त का निवाला खिलाया,
इन्ही मे तो प्यार के दो पल बिताया
सबका दिल से शुक्रिया अदा करता हु
जिन्होने इस अनाथ को
जाती–धर्म से बढकर समझकर अपनाया
और गले लगाकर अपने इंसान होने का फर्ज निभाया